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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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तुममें खोये खोये

तुममें खोये खोये

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तुम में खोये खोये

दुनिया में जीवन को

संभालना,

एक नया रास्ता बनाना है

जैसा कि हम बना रहे हैं

अपने से अलग

यूँ कह लीजिए

छूट गये हैं हम खुद से

या आ गये हैं

इसी दुनिया में एक दूसरी

दुनिया में

एक नया रिश्ता जो बना था

तुम्हारे साथ

अब उसका एक नाम दिया जाना है

लोग कहते हैं

अपनापन रिश्तों की माँ होती है

अब तुम्ही देखो

एक ही रिश्ता शेष है

अपना अपने से

और लाख कोई कहे

मैं हूँ

सच तो इतना सा है कि

तुम, मैं हूँ मां।


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உள்நுழை

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