तुम्हें इजाज़त है
तुम्हें इजाज़त है
तुम्हें इजाज़त है हमें गलत ठहराने की,
गुनेहगार समझती हमें प्यार कराने की।
इजाज़त तो हमनें भी नहीं दी तुम्हें भी,
अपनी अदाओं से घायल हमें करने की।
मौसम माना तपिश बढ़ा रहा तुम्हारा है,
अपने प्रेम से शीतल करना भी आता है।
इश्क़ कब इजाज़त लेता हम प्रेमियों से,
सदैव की इबादत ईश्वर अल्लाह रब की।
तुम्हें इजाज़त है सदा ही आने-जाने की,
आख़िर सच्ची सनम हमने मोहब्बत की।
तुम्हें इजाज़त है रूखसत हमसे होने की,
तुम्हें इजाज़त है रूठकर हमसे जाने की।