तुम

तुम

1 min
150


तुम्हारे आने की आहट से मुस्कुराये हर सुबह शाम

तुम्हारे पल्लू से बंधा मेरा पूरा संसार


मेरी भूख प्यास तकलीफ सब समझती तुम

तुम पर निर्भर मेरा पूरा घरबार


रसोई में तुम्हारी चूड़ियों की खनक

घर भर में तुमसे ही चमक


रसोई में तुम्हारे हाथ बनी चाय की महक

जब मैं पड़ी बीमार तो था तुम्हारा ही सहारा


खिचड़ी दही खिलाकर तुमने ही उबारा

मेरी घर गृहस्थी की तुम सिपहसालार


हर त्योहार, समारोह में तुम्हारी पुकार

घर दफ्तर सब संभाल पाती हूँ जब तक तुम्हारा साथ


तुम और तुम्हारे बिना, कांता बाई, मैं कुछ नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract