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विवेक वर्मा

Tragedy

4.9  

विवेक वर्मा

Tragedy

तुम रोक तो सकते थे

तुम रोक तो सकते थे

1 min
421


हां मान लिया,

मैं अज्ञानी और मूरख थी,

वो साथ मेरे तो चलता था

पर उसकी नजरें मुझपे थीं

वो दोस्त के वेश में गीदड़ था

जो हवस मिटाने आया था

हां मां लिया मैं ज़िद्दी थी

पर फिर तुम तो मेरे अपने थे


हां मान लिया 

कपड़े मैंने छोटे पहने थे

मैं चंचल चाल में रहती थी

पर तुम भी तो मेरे कपड़े थे

मुझे लाज शरम का ज्ञान न था

मैं जो भाई संग अपने चलती थी

अरे तू तो मेरा भैया था

पर मैं तो तेरी बेटी थी।


चलो मान लिया

वो जो भी था बलशाली था

तुमपे हर क्षण में भारी था

पर जब वो मेरी इज्जत पे

अपने यूँ होंठ मीजता था

तुमने तो देखा था उसको

मुझे भेड़ समझकर खा रहा था

क्यों तुमने ना कृष्णा के जैसे

उसका सीना दो फाँक किया

क्या खून तुम्हारा ठंडा था

या चेतना थी विश्राम लिए

अरे अपने बहना की खातिर

तुम रोक उसे तो सकते थे


जो वो दुर्योधन आज का था

तुम मेरे कृष्णा बन सकते थे ।

तुम रोक उसे तो सकते थे।

तुम रोक उसे तो सकते थे।


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