तुम प्रेम हो
तुम प्रेम हो
मैं उम्र भर तुम्हें लिखना चाहती हूं
हां... सिर्फ तुम्हें
जवानी की हर कहानी का
विषय तुम्हें चुनना चाहती हूं
जब कोई साथ न खड़ा हो
मैं साथी तुम्हें बनाना चाहती हूं।
जब कोई बात खुदा की करे
मैं उम्र भर तुम्हें पूजना चाहती हूं
जब बंधनों में बंधना हो
मैं डोर तुम्हें मानना चाहती हूं
जब सजे सेज फूलों वाली
मैं तुम्हें और समेटना चाहती हूं।
जब उम्र पहुंच चुकी हो अंधेरे की ओर
मैं सूर्य सा वहां तुम्हें रखना चाहती हूं
जब जीवन पल-पल घट रहा हो
मैं तुम्हारा स्पर्श पाना चाहती हूं
हां तुम प्रेम हो मैं तुम्हें
सदैव जीना चाहती हूं।