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Priyanka Gupta

Abstract

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Priyanka Gupta

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मैं संपूर्ण लौटूंगी

मैं संपूर्ण लौटूंगी

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मैं आज में भटक सकती हूँ

क्योंकि तुम सी मानुष मैं भी हूँ

उलझ सकती हूँ बंधनों में

समाज के ताने बाने में

और दिखावटी प्रेम में


कभी ये भटकाव परपुरुषों

का भी हो सकता है

जैसे तुम्हें हो जाता है कई

बार सुंदर स्त्रियों से प्रेम का आभास

 

परंतु मैं जब भी लौटूंगी संपूर्ण

लौटूंगी तुम्हारे आंगन में

और लेकर आऊंगी जिम्मेदारियों की

महक और निभाने का प्रण


क्योंकि जैसे खंडित मूर्तियां

मंदिर से बहा दी जाती हैं

किसी असुरक्षित स्थान पर

वैसे ही कोई अधूरी स्त्री

नहीं रखना चाहता और फेंक देता है

घरों से बाहर लांछन में लपेट कर।


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