तुम मिली
तुम मिली
इस जिन्दगी के सफर में
निहायत अकेला था मैं
लेकिन चल रहा था
अपनी मंजिल की तलाश में
जाने कितनी दूर तलक
चलता रहा
चलता रहा
मंजिल तो न मिली
राह कठिन थी
मुश्किल था
मंजिल तक पहुंचना
फिर भी
जारी रही मेरी कोशिश
चलते-चलते तुम मिली
मेरी खुशी का पारावार न था
गदगद कंठ से मैंने कहा
चलो अच्छा हुआ तुम मिली
मैं अकेला था
तुम मिली तो
हम दो हो गये !
तब तुमने बड़े ठसके से कहा
नहीं दो नहीं
ऐसा कहो कि
हम ग्यारह हो गये
भला वो कैसे ?
एक और एक तो
होते हैं केवल दो !
हां-हां बिल्कुल
पर एक और एक
होते हैं ग्यारह भी !
जैसे कि हमारे दो पांव
दिखते हैं ग्यारह
बनते हैं ग्यारह
काम भी करते हैं।