तुम क्या जानो
तुम क्या जानो
तुम क्या जानो कि
टहनी से तोड़ दी जाने वाली
पुष्प कलिका को भी दर्द होता है
तने से निकलते उस स्राव से पूछो !
तुम क्या जानो कि
अम्बर भी वसुंधरा से मिलने को
दर-दर तड़पता है
बारिश के बाद मिट्टी की
उस सोंधी खुशबू से पूछो !
तुम क्या जानो कि
मासूम बच्चे के तोतलेपन में
भी जिज्ञासा होती है
नन्ही आंखों में तैरते
अनगिनत सपनों से पूछो !
तुम क्या जानो कि
छोटी छोटी बातों में भी
जज़्बात हज़ारों होते हैं !
गुनगुनाती मुस्कुराती
मेरी हर कविता से पूछो !