तुम कहते हो
तुम कहते हो
तुम कहते हो
तुम देखते हो
क्या सच में तुम देखते हो?
तुम कहते हो
तुम सुनते हो
क्या सच में तुम सुनते हो?
सूंघना, छूना, स्वाद चखना
यानि पांचों इन्द्रियों का,
तुम कहते हो
उपयोग करते हो,
ज़रुर करते होंगे
लेकिन सतही स्तर पर।
न गम्भीरता से कुछ भी
रजिस्टर करते हो
न समझ पैदा करते हो
न गहराई से सोचते हो
पूरा जीवन
जैसे तैसे
शिकायत करते करते
विदा कह देते हो
इस संसार को।
उठो, जागो,
सजग हो जाओ
हर पल के प्रति
हर घटना के प्रति
तन और मन की
हर चाल के प्रति
इसी में जीवन की सार्थकता है।