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तुम धूप जैसे हो

तुम धूप जैसे हो

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मेरे कमरे की खिड़की पर लगे

उस रेशमी पर्दे से छनकर,

मेरे बिस्तर तक का सफ़र करने के बाद,

जो धूप मुझ तक पहुँचती है ना

वो धूप बिल्कुल तुम जैसी लगती है


अक्सर बिना बुलाए

दाख़िल हो जाती है मेरे घर में

ठीक तुम्हारी यादों की तरह,

बस आई कुछ वक्त ठहरी और

फिर ढल गई एक शाम बनकर


जानती हूँ ये सब हमेशा ऐसे ही चलेगा

आना, ठहरना और फिर

बिना कुछ कहे चले जाना

फिर भी मैं हर रोज इंतज़ार करती हूँ


उस धूप के उस रेशमी

पर्दे से छनकर आने का

और तुम्हारी यादों का मेरे

हर घाव को फिर से हरा कर जाने का


ये कमरा, ये खिड़की और उस खिड़की पर

लगा रेशमी पर्दा अपने आप में

ना जाने कितनी ही

कहानियों को लिए ख़ामोश हैं


कहानी तुम्हारी, मेरी और फिर हमारी

जो कभी यही से शुरू हुई थी,

और ख़त्म तो आज तक नहीं हुई,

बस ठहर गई है हमेशा के लिए


अब सब कुछ शून्य है यहाँ सिर्फ शून्य

और मैं शांत, शीतल और इस दुनिया की

सभी रिवायतों से बहुत दूर

अपने चेहरे से टकराने वाली

उस धूप के इंतजार में।


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