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बिट्टू सोनी

Abstract Others

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बिट्टू सोनी

Abstract Others

"तुम बिन भी मैं तुम हूँ "

"तुम बिन भी मैं तुम हूँ "

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मैं कितनी ख़ैरियत करूँ खुद की खुद से

कोई पूछे तो इस बारे में बैठकर मुझ से

मैं खत्म हो रहा, पता नहीं कब तक रहूँगा

मैं तुम्हें कब का मार चुका पर साथ में

मरता रहूँगा।


सोचा तुम्हें सजाऊंगा एक बार अपने हाथ

आना इक बारी बिना संवरे हमारे साथ

मेरी ख़्वाहिश मानो यूँ मुकम्मल हो रही 

संभालने में मेरे हाथों से मिट्टी डल रही।


मेरा रिश्ता जुड़ा ही कब ऐसा लगता मुझे

मैं बैठा ही कब तुम्हारे संग तुम्हारे होते हुए

मैं फिक्र बस इसकी करता हूँ हर दिन

मैं बुझने पर भी जला हूँ हर दिन।


जहाँ कहता कौन चिल्लाता मोहब्बत में इतना

मैं कहता देखो तो हमारी वाली को हमारे जितना

होश में भी हो तो बिन तारीफ़ ना आ पाओगे

बस मोहब्बत मत करना, वरना लिखना सीख जाओगे।



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