वीरत्व का हो रहा भोग विलास
वीरत्व का हो रहा भोग विलास
हरेक पन्ने भीगे हुए
रक्त की सिहाई से
मैं कैसे कह दूं आज़ाद हुए
हम कानूनों की ऊंचाई से
पन्ने नहीं लिखते कभी खूँ
बस लिखते अपने मना का सुकूँ
कैसा हमारे मन का स्वार्थी विचार
बस झूठी स्याही चलती बारम्बार।
विधि विधान से परिपूर्ण संविधान
लिखने वालों को बताते हम सर्वज्ञान
कब तक बिन अलंकृत उनका सर्वनाम
बलिदानी को फूँका जाएगा श्मशान।
कानून बनाती हमें थोड़ा और बन्दी
तो सोचो कैसे मिलती आज़ादी कर सन्धि
जो भी गया सार्वभौम आचरण तक
वो रहा इतिहास के पन्नों की धूल तक।