STORYMIRROR

Avinash Kumar

Abstract

4  

Avinash Kumar

Abstract

तुझे जिया

तुझे जिया

1 min
270


बूँद से -

समुंदर तक

तुम-

इतना फैले...

कि सिमट नहीं पाए...

किसी भी अंक में।

इतना विस्तार....

कि

अणु से ब्रह्मांड तक-

सिलसिले में है यात्रा...

अनंत तक!!

पर....

मुझे याद है -

तुम-

इतने..

इतने....

छोटे हो गए थे-

मेरे बचपन में..

कि

मैं

तुझे

अपने नन्हे हाथों से

खूब छुआ...!

खूब पीया...!

और तो और.....

तेरी आँखों में झाँक कर -

खूब जिया.....!!!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract