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Ravi Purohit

Abstract

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Ravi Purohit

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टूटे ना उनकी अंतस-तास

टूटे ना उनकी अंतस-तास

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स्याह अंधेरी रात

जगाती रही रात भर

सड़क की संवेदना को,

झेलती रही 

दुनियावी अनगिन दंश,

जगराते के माइक

बखानते रहे


शहर की भक्ति-भावना

और पाक चरित्र,

पहरेदार

करते रहे रखवाली

बोतल की,

बिस्तर बन सुबकती रही

औरतों की मजबूरियां

इज्जतदारों की मनेच्छाओं में,

बूढा लाचार बाप


बलगम के थक्कों में

रात भर देखता रहा

छोरी के हाथ पीले होने के ख्वाब

कड़कड़ ठंड में कुछ ऑटो वाले

तलाशते रहे परिवार की भूख,

न जाने कितनी रातरानी 

मुरझा कर


दूर्वा में जा मिली

पर हार नहीं मानी किसी ने

लोक व्यवहार के समक्ष !

उनका भरोसा

इंतजार करता रहा

तुम्हारे उजाले का रे सूरज

अब तुम ही संभालो इन्हें

तुम ही हो इनकी उम्मीद।


डब-डब आंखों की इनकी आस

टूटे ना बस

वक्त के थपेड़ों से

निभाओ उजाले के नेग रिवाज !


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