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Rajiv Jiya Kumar

Abstract

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Rajiv Jiya Kumar

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टूटा तारा

टूटा तारा

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हसीन सुनहला एक तारा 

टूूूटा दूर गगन में देेेखो, 

आओ मिलकर मांगे

सपने जो खुली ऑंखो ने

ओट में पलकों के सहेजे।।

आओ मिलकर मांगे

बस्ती अपनी बस सजी रहे

हंसती अपनी बस जगी रहे

गाए झिलमिल सब मानव गान

भर जाए निरीह तक मेें प्राण।।

आओ मिलकर मांगे

धरती अपनी सजी रहे

खिलखिलाते नौनिहालों से

डिगे न हँसी की कोई शिला

कांटे बोते करतालों से।।

आओ मिलकर मांगे

सनसनी पवन की बनी रहे

छतरी सूरज की तनी रहे

हो पूरी तृृृप्ति की हर मुराद 

रहे न पीछे कोई वाद।।

आओ मिलकर मांगे

कलकल नदियााँ बहती रहे

वन उपवन खिले रहे पल पल

खग गाए वह तरंग

मृृृदूूूल सा वह गान

सहज सरल कर जाए जो

मानव मानव का मेल मिलान।।

आओ मिलकर मांगे

कर बखान यह अपना अरमान 

सारे मन हो नेक नेक

एक हों होकर अनेक 

भूूख भय की बात 

न हो भूलवश किसी कगार

मानवता की हो जयकार,

गगन मेें दूर टूटा एक तारा

मिलकर मांगे चलो यह सारा।।

       


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