ठहरा पानी
ठहरा पानी
पानी तुम नाराज़ हो हमसे,
जो नही, तो फिर क्यूँ
तुम ठहर गए हो।
तुमसे ही तो, सीखा था मैंने
दुखों के बाँध तले नहीं जी कर, बस
अविरल सा इस जीवन में बहते रहना।
अपनों के रंग में रंग जाना,
बनकर बूँद, औरों की खातिर
इस माटी से मिल जाते हो।
खुद का मोल ना जाने फिर भी,
बिन तेरे सब सूना है।
पानी क्या अब भी
तुम नाराज़ हो हमसे
बस तुझको तो बहते रहना है।