तरुण तपस्वी-सा वह बैठा
तरुण तपस्वी-सा वह बैठा
तरुण तपस्वी-सा वह बैठा
धारण कर धैर्य और ईमान
निर्निमेष वो चिंतन करता
रचता है इक नया कीर्तिमान।।
मुखमंडल से निकलती आभा
जैसे हो शशि की छाया
पौरूष है उसमें ओत-प्रोत
बहता भीतर मधुमय श्रोत।।
है छाई नीरवता मग में
कातर है अब लोग यहां
है जरूरत फिर इस जग को
पीपल की शीतल छाया।।
