STORYMIRROR

Sukant Suman

Abstract

3  

Sukant Suman

Abstract

तरुण तपस्वी-सा वह बैठा

तरुण तपस्वी-सा वह बैठा

1 min
341


तरुण तपस्वी-सा वह बैठा

धारण कर धैर्य और ईमान

निर्निमेष वो चिंतन करता

रचता है इक नया कीर्तिमान।।

मुखमंडल से निकलती आभा

जैसे हो शशि की छाया

पौरूष है उसमें ओत-प्रोत

बहता भीतर मधुमय श्रोत।।

है छाई नीरवता मग में

कातर है अब लोग यहां

है जरूरत फिर इस जग को

पीपल की शीतल छाया।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract