तरंगिणी आज की
तरंगिणी आज की
मैं हूं सरिता सरल स्वभामिनी,
निर्मल मेरा जल है,
प्यासी धरा को तृप्त में करदूंं,
यह मेरा अभिबल है।
स्त्रोतस्विनी प्रवाहिणी,
तरंगिणी मैं सद्काम की,
जयमाला तनुजा अमृता मैं,
अविरलबहती अभिराम की।
कल -कल छल -छल ,
बहती है धारा यहां,
जैसे हो पावन स्वरूप आधारा।
गंगा यमुना गोदावरी,
अलख छवि है मन्दाकिनी,
सरयू ,ताप्ती , नर्मदा,
अद्भुत गति है पावनी,
त्रेता द्वापर हर युग में,
मैं माँ बन पूजी गयी सदा,
कलयुग में करूं पुकार यही,
प्रदूषित न करो यदा कदा।