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Ajay Prasad

Abstract

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Ajay Prasad

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तरक्की

तरक्की

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होती है क्या तरक्की किसी गरीब से पूछो

छिन गई हो जिसकी रोज़ी बदनसीब से पूछो।


रहनुमा रहम दिल हो ऐसा कभी नहीं हुआ

किस कदर ये खलती है, टूटती उम्मीद से पूछो।


छिन ली रिसालों की हुकूमत बदलते वक्त ने

हश्र क्या हुआ लिखने वालों का, अदीब से पूछो।


खामोश खड़ा देखता है रोज़ अपने आस पास

किस तरह उड़ती है धज्जियां तहजीब से पूछो।


मौत मुतमईन है अजय आदमी के इन्तजाम से

दुआ, दवा, ईलाज है क्यूँ बेअसर, मरीज़ से पूछो।


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