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Santosh Kumar Verma

Abstract

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Santosh Kumar Verma

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तोड़ दो रिवाज़

तोड़ दो रिवाज़

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तोड़ दो रिवाज

समय के अनुसार करो परिवर्तित

पुराने ढर्रे पर नहीं चल सकती ज़िन्दगी

जैसे पत्थर से पत्थर 

टकराकर पैदा हुई थी आग।


आज भी मूल चीजें है वही

जैसे लाइटर में भी है पत्थर

पैदा होती है आग,

सलाई से भी होती है आग उत्पन्न

पर यहाँ भी होती है घर्षण

थोड़ा सा परिवर्तन।


लाना होगा आपको भी

खुली छूट भी नहीं दी जाए

पर इतना जुल्म भी न किया जाए

कि बच्चे खुद लेने लगे फैसला

क्योंकि पहले जैसा नहीं है समय

आप की बातें है स्वीकार।

 

परन्तु है अंतर आपकी सोच

और नई पीढ़ी की सोच में

इन्हीं के बीच दोनों को 

बैठाना पड़ेगा सामंजस्य

एक करनी पड़ेगी तालमेल।


तभी चल पायेगी ये जीवन पहिया

पर जब आप पड़े रहेंगे 

रूढ़िवादी विचारधारा में

अड़े रहेंगे उसी पर

न होंगे टस से मस

तो बाध्य होकर लेंगे बच्चे फैसला।


और टूटकर रह जाएंगे आप

वो भी न ले पाएंगे आपका साथ

हिचकेंगे करने से आपसे बात।


होगी जब भी मुलाकात

झिझकेंगे दोनों करने से

एक दूसरे से 

मन के भीतर की

दबी हुई बात।


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