फटी जेब
फटी जेब
जीवन की आपा-धापी में
जीने के लिए नहीं है समय
ना मिलती है श्वास सुकून की
जोड़-तोड़ गुना भाग कर
कि आज से बेहतर होगी कल
की आस जगती जाती है
प्रतिदिन इसी तरह कटती जाती है
सोचता हूं कुछ करने की
करना कुछ और होता है
परिस्थितियां कुछ और करा जाती है
प्रतिदिन बेवजह मुझे डरा जाती है
सौ की मेहनत करता हूं
चालीस की मजदूरी पाता हूं
पैतिस रोजमर्रा खर्च हो जाती है
पांच रुपया जो बचाने की सोचता हूं
पर बीस रुपए की उधारी हो जाती है
इस तरह मेरी फटी हुई जेब
फटी की फटी रह जाती है।