तो चलो
तो चलो
अनसुनी कहानियाँ सुन सको तो चलो
टूटे ख्वाब नींदों के बुन सको तो चलो
वक़्त रेत की तरह फिसल ही जाता है
मेरे वक़्त को वक़्त दे सको तो चलो
इश्क़ पाकीजा कर सको तो चलो
जिस्म नहीं रूह चुन सको तो चलो
रंग कई हैं मोहब्बत के
मोहब्बत से मोहब्बत कर सको तो चलो
धारा अविरल बह सको तो चलो
मार पतवारों की सह सको तो चलो
तूफ़ाँ मचलते ही रहते हैं जहाँ में
अडिग लौ मशाल सी जल सको तो चलो।