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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

Abstract

तमाशबीन बन कर

तमाशबीन बन कर

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तमाशबीन बन कर रह गये हैं हम

जब कि ये तमाशा

जो चल रहा है

जीवन के आस पास

उसे एक तमाशा बना सकते थे हम


तमाम दृष्टांत

गुजर रहे है जीवन के आस पास

कि जीवन

सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।


हम तमाशबीन बने हुये हैं

जबकि हम

तमाशा दिखा सकते हैं जीवन का

फिर भी

तमाशा बने हुये हैं।


बहुत सोचा

आखिर हम जीवन को

तमाशा बनते हुये

क्यो देख देख हैं

आप को जैसा भी लगे

मुझे लगता है


हमारी महत्वाकांक्षा ही

हमे हमसे दूर लिये जा रही है

और जीवन को तमाशा बनाने

वाले लोगों को जीवन का

तमाशा दिखाने के लिये


लौटना पड़ेगा अपनी ओर

जीवन की ओर

मनुष्य होने के एहसास की ओर।


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