तेरी मेरी यारी दा कादा झगडा
तेरी मेरी यारी दा कादा झगडा
रूठ कर तुम चली न जाना गिले शिकवे हों कोई तो बैठ सुलझाना ।
परिपक्व हम दोनो में एक भी नही ये हकीकत है सखी फसाना नहीं ।।
देखो मूहं मोड़ कर नहीं जाना गिले शिकवे हों कोई तो बैठ सुलझाना ।।
आशिकी के लिए कोई उमर कहाँ होती है गर कहीं लिखी हो तो यारा मुझे भी दिखलाना ।।
रूठ कर तुम चली न जाना गिले शिकवे हों कोई तो बैठ सुलझाना ।।
वादा न किया था न ही अबके करूंगा शर्त ये है कि वचनों से मैं कभी न मुडूगा ।।
चाह्ता हुँ तुम्हे दिलो जान से तब से अब तक लिख के ले लो आगे भी यही काम करूंगा ।।
छोटी छोटी बात पर तुम भी दिल न जलाना इन्सान हूँ मैं भी हो जाता है कभी 2 झुन्झ्लाना ।।
रूठ कर तुम चली नहीं जाना गिले शिकवे हों कोई तो बैठ सुलझाना ।।
इस अबोध बालक का है ही कौन रहबर जानू मैं जो रूठ जाऊँ कभी
तो एक चांटा कस के तुम लगाना ।।