तेरी दासी
तेरी दासी
श्याम तेरे चरणों की धूल,
बनना चाहती हूँ।
ना राधा, ना मीरा
बनना चाहती हूँ।
अरज करत हैं दासी,
तुज दरस की प्यासी।
इस धूल पर बस
एक नज़र धर देना,
इन चरणों में
शरण पाना चाहती हूँँ।
बलिहारी जाऊँ
आपकी किस्मत पे,
तू नज़र उठाये तब तक,
धूल से फूल बन जाती हूँ।।