तेरी और भी चाहत
तेरी और भी चाहत
फूलों में प्यासी है निशा की छाया,
देख तुहिन विन्दुओं को लाज आ गई।
मूक नयनों में उभरतीं रहतीं,
अंतर्द्वंद भरीं परछाईयाँ नभ की,
वसुधा की धड़कनें तेज होकर ।
महक उठें बन प्रसून गुलाब के,
जब भी मैं देखता हूँ तुझे तेरी ओर ।
लगता है मुझे कि तुझे और भी ,
"कोई और जी भरकर देखता है "।
तेरी और भी अदाएँ है नखरें भरीं।
मधु भीगीं हुई इन चारु पंखुड़ियों से
अविरल उत्स मधु-धारा टपकता है।

