STORYMIRROR

H.K. Joshi Joshi

Romance Classics

4  

H.K. Joshi Joshi

Romance Classics

तेरी और भी चाहत

तेरी और भी चाहत

1 min
330

फूलों में प्यासी है निशा की छाया,

देख तुहिन विन्दुओं को लाज आ गई।

               मूक नयनों में उभरतीं रहतीं,

               अंतर्द्वंद भरीं परछाईयाँ नभ की,

वसुधा की धड़कनें तेज होकर ।

महक उठें बन प्रसून गुलाब के,

             जब भी मैं देखता हूँ तुझे तेरी ओर ।

               लगता है मुझे कि तुझे और भी ,

"कोई और जी भरकर देखता है "।

तेरी और भी अदाएँ है नखरें भरीं।

             मधु भीगीं हुई इन चारु पंखुड़ियों से

             अविरल उत्स मधु-धारा टपकता है।


 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance