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Prashant Mishra

Romance

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Prashant Mishra

Romance

तेरे आने की चाह नहीं रखता हूँ

तेरे आने की चाह नहीं रखता हूँ

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चलते चलते मैं रुक भी जाता हूं

तेरी याद आती है तो खो भी जाता हूं

सच कहूं, तेरी आने की अब मैं भी

चाह नहीं रखता हूं


तुझ संग बिताए पल, तुझ से जुड़ी

यादें बहुत हैं

तुझ संग देखे झूठे ख़्वाब भी बहुत है

तुझ को पाने की चाह में ख़ुद को

खोता देखा हूं

सच कहूं, तेरी आने की अब मैं भी

चाह नहीं रखता हूं


तेरे झूठे खाए कसम और तेरे झूठे

आँसू भी याद हैं

जाते वक़्त बेमन से रोकने का

किस्सा भी याद है

इन सब को याद कर अब अकेले

में ख़ूब हँसता हूं

मैं कितना पागल था तेरे ख़ातिर

े सोचता हूं

लेकिन सच कहूं, तेरी आने की

अब मैं भी चाह नहीं रखता हूं


कल तक जो हँस हँस कर मुझसे

बात करती थी

झूठी ही सही लेकिन मेरी कसमें

खाती थी

आज पल भर में कैसे बदल गई मैं

ये सोचता हूं

सच कहूं, तेरी आने की अब मैं भी

चाह नहीं रखता हूं


मुझे याद है हफ्तों तेरा मुझसे

मिलने का इंतजार करना

सिर्फ़ मुझसे बातें करने के लिए

झूठ बोल कर फोन लाना

वो सब दिखावटी थी या सच में

प्यार था अक्सर तन्हाई में सोचता हूं 

ख़ैर छोड़ो, तेरे आने की अब मैं भी

चाह नहीं रखता हूं


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