तेरा जज्बा
तेरा जज्बा
मुझमें नहीं वो जज्बा
जो तेरे लहू में समाया था
नहीं वो रुतबा
जो तेरी मस्तक दे गया था
मौत न डिगा पाया तुझे
आजादी के दिवानगी से
चमन खिल रहा आज
तेरे अरमान का का
मन मचल रहा आज
तेरे गुणगान को
आ तेरी कीर्ति को ले जाऊँ
एक नयी आसमान को !
तेरी हस्ती को गद्दार
क्या समझेगा
स्वार्थ के अंधे को
कौरव ही पनपेगा
मिटा चुका है अपना ज़मीर
वो साँसों से क्या चमकेगा
थिरकते हैं उनके पांव
तेरे दिए धरती पे
नकली आंसू बहाते हैं
अपनों के मरती पे
जिन्दा लाश क्या जाने
शहीद सम्मान को
ये शहीद शत नमन तुझे
मैं तत्पर हूँ
तेरे यश और मान-सम्मान को !