स्वर्णिम भारत
स्वर्णिम भारत
वीर युग के आर्यवर्त ने,
लिखा स्वर्णिम इतिहास।
संघर्षशील परवानों ने,
नहीं छोड़ा अंतिम श्वास।।
पुरु के पौरुष से,
ठिठका हृदय अचल।
यवनों में युद्ध झेलम की,
चलती भय की हलचल।।
जीवन दर्शन की पोषक धरा में,
जन्में यहाँ स्वामी बुद्ध।
ह्रदय परिवर्तित हुआ देखकर,
सर्वनाश का कलिंग युद्ध।।
अखण्ड भारत के स्वप्न से,
जिसका होता था परिहास।
कूटनीति की आर्यवर्त ने,
लिखा स्वर्णिम इतिहास।2।
छीन ले गये मस्तक अस्मिता,
जिहाद सिंध इसका मूक गवाही।
गौरी-गजनी ने इस देश की,
तराइन में बदली आवाजाही।।
बप्पा, सुहेल, मुक्तापीड जैसे,
डटे खड़े थे राष्ट्र के प्रतिहार।
हुए सुनकर अरब भयाक्रांत,
शौर्य तलवारों की टंकार।।
कट्टरवादियों और आक्रांताओं से,
जब बिछाई जिहाद की लाश।
बर्बर उन आतताईयों से,
होता अंत का आभास।।
मुग़ल प्रतिरोध में अग्रिम राणा,
हुआ हल्दी घाटी का शंखनाद।
वीर शिवाजी के शौर्य ने,
हरा परतन्त्र का आर्तनाद।।
अंग्रेज गौरों के विरुद्ध हुआ,
सन सत्तावन का समर।
कुँवर और रानी के उत्सर्ग से,
वे हुए अजर-अमर।।
लोकतंत्र की आशा में हुआ ,
आजादी का अंतिम प्रयास।
वीर युग के आर्यवर्त ने,
लिखा स्वर्णिम इतिहास।3।
