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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

Abstract

स्वीकार

स्वीकार

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एक तुम्हारा स्वीकार

बहुत निर्णायक है

दुनिया भर की दुश्वारियों पर।

दुश्वारियां

छल, कपट, धोखा

नफरत और वैमनस्यता की।

एक सभ्यता

जैसे खुद के होने से

इनकार करता हुआ कोई

या पूरा हुजूम।


तम्हारा स्वीकार बहुत है

तुम्हारे हाँ के होने में कभी

खुद को खोया नहीं हमने

कभी खोया नहीं

तुम में विश्वास

अपना धैर्य,

और अब जब लगने लगा है

तुम्हारी एक तस्वीर बन रही है

दुश्वारियां पिघल रही हैं

जैसे पूरी की पूरी

विचारों की जमी हुयी धूल

उड़ रही है


और पास में नये विचारों की

कोई किताब सी उग रही है

और दिलचस्प तो ये है

ये किताब दुश्वारियों के

खत्म होने की कहानी नहीं

उनके खत्म होने का

चलचित्र है

आज है

और अभी है।



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