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Garima Rajnish Dubey

Abstract

4.5  

Garima Rajnish Dubey

Abstract

सवाल

सवाल

1 min
345


तरकारियाँ छौंकते,

गर्म तेल की छींट से बचने को,

उसकी मिचमिचाती आँखों से 

उठी चमक तब अचानक मद्धम पड़ जाती है, 

जब खाना खाकर तुम कहते हो, 

"आज खाने में मज़ा नहीं आया !"


जतन से धो-सुखा, 

इस्त्री कर अलमारी में तहाकर रखते

कपड़ो को सहेजते, 

दर्द से कमर सीधी करने की कोशिश में 

उसकी कमर की टीस अचानक 

कुछ और बढ़ जाती है,

जब तुम कमीज़ पर पड़ी 

एक मामूली सी सिलवट को देख पूछते हो,

"अरे,इसमें कलफ नहीं लगाया ?"


रात देर तक जग कर,

बच्चों का होमवर्क कराते,

उसकी उनींदी पलकें 

सुबह नम होकर तब 

और अधिक बोझिल हो जाती हैं, 

जब जरा देर से उठने पर,

तुम झल्लाकर पूछते हो,

"कल रात तुमने अलार्म नहीं लगाया ?"


रिश्तेदारी, दुनियादारी, दोस्ती-यारी

निभाने के फेर में करती खातिरदारी,

तुम्हें राशन का पर्चा थमाती,

वो तब थोड़ी और सकुचा जाती है,

जब तुम सामान की लिस्ट पर 

सरसरी निगाह डालते पूछते हो,

"ये सब पिछले हफ्ते ही तो मंगाया था ?"


बच्चों की पसंद के व्यंजन बनाने

की कवायद में साऊथ इंडियन 

और नार्थ इंडियन के फेर में 

चक्करघिन्नी बन घूमती वो तब 

अचानक संभल नहीं पाती है,

जब तुम आधी रात 

रसोई में झाँककर पूछते हो,

"आज क्या खाना नहीं बनाया 


इतना हल्के में मत लिया करो... 

याद रखना - 

कमाकर न लाती तो क्या

बचाकर कमाती है,

पतंग सी खटती है दिनभर

घर का हर कोना सजाती है, 

जी, 

वो होममेकर कहलाती है. 


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