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Garima Rajnish Dubey

Others

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Garima Rajnish Dubey

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प्रेम संबंध

प्रेम संबंध

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एक प्रश्न मन मे काफी समय से सड़ रहा है,

क्या एक स्त्री और पुरूष के

प्रगाढ़ संबंधों का मापदंड

सिर्फ संभोग है?


क्या देह से देह का घर्षण ही

उनका आखिरी पड़ाव है?


शायद नहीं..

बिल्कुल भी नहीं।


कोई तो अदृश्य बल होता होगा

जो उनको आकर्षित करता होगा

एक दूसरे की ओर।

कि वो सात फेरों में भी न रहें

पर फिर भी बँधे रहें।

या फिर यूँ कहूँ कि

कोई तो तेजाब होगा

जो गला देता होगा

सारे दकियानूसी रूढ़ियों की रस्सियाँ।


एक स्त्री और पुरुष

कृत्रिमता के आडंबर से परे होकर

साझा भी तो कर सकते है

अपने कॉलेज के अनुभव।

वो बता बताकर हँस सकते हैं कि

प्रोफेसर कितना पकाऊ होता था,

कि लाइब्रेरी में वो घंटों

किसको ताकते रहते थे।

कि केमिस्ट्री लैब में

वो टीचर की नज़र बचाकर

कौन कौन से रसायन मिक्स किया करते थे।

हाँ, क्यों नहीं साझा कर सकते वो ये सब।


वो कर सकते हैं विनिमय

एक दूसरे की कलम से रिसे शब्दों का,

वो छील सकते हैं

एक दूसरे के हृदयों पे चढ़ी विचारों की परत ...

वो बटोर सकते हैं

एक दूसरे की आँखों में तैरते मीठे कड़वे तजुरबे...

और यकीन मानो के

इनमें ज़रा भी देहवासना की गंध नहीं होगी।


माना कि देह आत्मा का आवरण है,

पर क्या ये सम्भव नहीं कि

देह स्पर्श किये बिन ही

दोनों एक दूसरे की आत्माओं को स्पर्श कर लें।

यूँ भी तो संभव है कि

उनका रिश्ता

सृष्टि के अलिखित संविधान में

एक नया अनुच्छेद जोड़ दे,

जो पहले कभी न पढ़ा गया हो

न सुना गया हो।


और हो सकता है कि

प्रेम ने अपनी यात्रा में

एक नया गंतव्य निर्धारित किया हो।

जो देह मिलन से उन्मुक्त हो।

जहाँ सिर्फ ठहाके हों

जहाँ एक दूसरे के

बहते अश्रुओं को पोंछने

वाली हथेलियाँ हों।

जहाँ एक दूसरे के मनों में पसरे खालीपन

को प्रेम से भरने की होड़ हो।


पर सच्चाई तो यही है कि

स्त्री और पुरुष होने की अनुभूति ही

नहीं पनपने देती

एक विलक्षण नवांकुर को वृक्ष में।

और जो एकाध इस राह पे चलते भी हैं

उनको कभी न कभी

ये समाज एहसास करवा ही देता है

कि वो एक स्त्री और एक पुरुष हैं।


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