पंख
पंख
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जिन माँओं ने
बेटियों को सीख दी कि,
ठहाका भाई का है,
तुम मुस्कुराओ।
दूध वो पी लेगा,
तुम चाय ले जाओ!
उसे जाने दो बाहर,
तुम घर ठहर जाओ.
अभी उसे और सोने दो,
तुम उठ जाओ!
देखने दो उसे मैच,
तुम रसोई में जाओ.
उसके लहज़े में ही रौब है,
तुम ज़रा धीमे बतियाओ !
उसकी बात काट रही?
जुबान पर ज़रा लगाम लगाओ।
उसे तो यहीं रहना,
तुम ढंग-तरीकों में ढल जाओ,
वे माएँ ज़रूर किसी
बेबस माँ की
बेटियां रही होंगी।
तुम वैसी मत बनना।
हो सके तो,
अपनी बेटी के लिए सिर्फ
पंख बुनना !
कलम जो देखती है वही लिखती है !
और लोग कहते हैं , जमाना बदल गया है !