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Rahul Wasulkar

Abstract

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Rahul Wasulkar

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सूखा पत्ता और वृद्ध

सूखा पत्ता और वृद्ध

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पेड़ से गिरा तरबतर फूट फूट कर रोया

एक सूखा पत्ता आज जीवन खो गया।


जिसे हर कोई देख देख कर अनदेखा कर गया

एक वृद्ध आया स्नेह से उसे हाथों में भर लिया।


जहाँ भेड़ चलन का हर कोई नफरत कर गया

वह वृद्ध सूखे पत्ते में अपना प्रतिबिंब देख चला।


परम सत्य को जान अपने नजदीक समय को जान गया

पर फिर खड़ा हुआ सूखे पत्ते को लेकर

शीश हिमालय से कर गया।


सारे हरे पत्ते सुस्त और खाली कर गया

एक योद्धा अब साम्राज्य छोड़ सन्यास को चल दिया

एक सूखा पत्ता और वृद्ध सब को स्तब्ध कर गया।


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