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अनजान रसिक

Inspirational

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अनजान रसिक

Inspirational

सुपर पावर (दिव्य शक्ति )

सुपर पावर (दिव्य शक्ति )

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बावरे इस मन में इच्छा उमड़ती कभी-कभी कि काश मुझ में होती कोई दिव्य शक्ति ,

अमरीका , रूस की भांति तब मुझसे भी दुनिया थर्र-थर्र कांपती.

नाज़ मुझे खुद पर होता ,मुझ सा बलवान ना दूजा कोई होता ,

एक इशारे पर मेरे दुनिया के ताकतवरों का भी तख्तोताज़ हिल जाता.

अपना सिक्का चलता चहुं- ओर , होता जयघोष हर दिशा में ,

ऐसा बजता डंका दुनिया में, देखते रह जाते लोग विस्मय से ..

उस दिव्य - शक्ति की नींव पर सजता मेरी शक्ति का दरबार ,

भाव- विभोर हो कर सभी ,करते मेरी ही जय जयकार ..

मन में मंदिर और आत्मा में दिव्य- शक्ति तो पहले से है बसी,

पाकर दिव्य-शक्ति का सानिंध्य, शेष ना कोई इच्छा रह जाती.

स्वयं में सक्षम होती इतनी,ज़रूरत किसी सहारे की ना रहती ,

दिव्य शक्ति पाकर, सर्व -संपन्न खुद को समझने मैं लगती ..

मन में उमड़ती ये इच्छा अचानक से शांत हो गयी उस पल,

ना कोई दोस्त ना प्रतिद्वंदी रह जाएगा ऐसे में, ख्याल ये आया जब.

दोस्तों से जीवन को दिशा मिलती तो प्रतिद्वंदी से ताकत का एहसास ,

ये हों तो लक्ष्य मिलता जीवन को,ना हों तो सब निरर्थक,सब बेकार .

रोम - रोम चिल्लाया उस पल कि नहीं चाहिए ऐसी शक्ति

जो सर्वशक्तिमान बना के भी चिह्न निर्बलता का बन जाए ,

नहीं चाहिए ऐसा वरदान जो विरल से भी ज़हरीला बन जाए ..

काट जाए मुझे टुकड़ों में ऐसी दिव्य शक्ति किस काम की ,

असल में शक्ति दिव्य वही जो परहित के लिए इस्तेमाल हुई..


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