सुनो स्वदेश प्रेमियों
सुनो स्वदेश प्रेमियों
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सुनो स्वदेश प्रेमियों भुला न दो अतीत को।
बुझे कभी न वो दिया जला गए शहीद जो।
लिखे अनेक पृष्ठ हैं जवानियों के रक्त से।
कि पत्थरों पे लेख हैं खुदे कठोर सत्य से।
मिटी नहीं कहानियाँ सुभाष की प्रताप की।
बची हुई निशानियाँ अनेक इंकलाब की।
कि याद भक्ति भाव से करो हरेक वीर को।
बुझे कभी न वो दिया जला गए शहीद जो।
शहीद वो महान थे ज़मीं पे आसमान थे।
फिरंगियों के काल वो स्वराज के वितान थे।
लुटाए प्राण हर्ष से कभी हटे न फर्ज़ से।
किया विमुक्त देश को हुए विमुक्त कर्ज़ से।
रखो सदा सँभाल के जिहादियों की जीत को।
बुझे कभी न वो दिया जला गए शहीद जो।
अनेक वर्ष हो चुके स्वतन्त्रता मिले हुए।
अपूर्ण हैं प्रयत्न वे तरक्कियों के जो हुए।
सुकर्म के सुलेख से लिखो कथा विकास की।
करो कठोर साधना सुना रही नई सदी।
हुई अशेष दासता न आए आज मीत वो।
बुझे कभी न वो दिया जला गए शहीद जो।