सुनो ना
सुनो ना
सुनो ना,
आज देखा था मैंने उसे,
ओस की बूंदो-सी है वो,
फिर भी ठहरती नहीं है वो,
जैसे सूरज की पहली किरण - से,
मोती-सी ओस चमकती हो,
ऐसा-ही नूर पाया है उसने।
सुनो ना,
आज देखा था मैंने उसे,
नदी की तेज धारा-सी है वो,
खुद को रोक नहीं पाती है,
बोलना शुरू करे, तो बस बोले चले जाती है,
खुद को उड़ने से रोक नहीं पाती है।
सुनो ना,
आज देखा था मैंने उसे,
कभी पहाड़ों-की शांत हवा-सी है वो,
जो मन में समा जाये, उस राग-सी है वो,
कभी समुद्र की शोर मचाती लहरो-सी है वो,
और कभी उसे देख कर, मेरे चेहरे पर जो आती है ना,
उस मुस्कान -सी है वो।।