सुंदर धरा
सुंदर धरा
भलाई से जगत को हम, चलो कुछ तो सँवारेंगे।
विचारों के सत्संग से, बुराई को हराएँगे।
धरा को फूल से भर कर, उसे हम भी सजाएँगे।
कि रोको झूठ की बातें, यही दीपक जलाएँगे।
नहीं कोई अशिक्षित हो, यही पैग़ाम लाएँगे,
सभी के हाथ पुस्तक हो, यही सबको बताएँगे।
चलो ऐसी जगह चलकर, हरा पौधा लगाएँगे,
जहाँ छाया हमेशा हो, सुखों के गीत गाएँगे।
ख़ुशी की बारिशों से हम, जहां को भी सजाएँगे,
जलाकर एक दीया भी, दिलों से ग़म भुलाएँगे।