सुकूँ मिलता नहीं
सुकूँ मिलता नहीं
इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कभी तू ठहर
मासूम बच्चों के साथ भी बिता थोड़ा पहर
कुछ समय निकाल,करके देख तू परोपकार
किसी जरूरतमंद की कभी कोई मदद कर
कभी अकेले में कर ख़ुदा के नूर का तू दीदार
अपने दुश्मन से भी करके देख तू कभी प्यार
जब मन होगा तृप्त तभी आएगा तुझे करार
मत भटक इधर उधर देख ये सब आज़माकर
ढूंढने से सुकूँ मिलता नहीं कहीं बाज़ार में बाहर
कर महसूस उसे जो छिपा है तेरी रूह के भीतर।