सुहाना सफर
सुहाना सफर
ट्रेन का मेरा सफर वो
बात जाने कब की है
लड़की जो मेरे सामने थी
सपनों में मेरे अब भी है।
हिम्मत करके मैने पूछा
नाम क्या है आपका
थोड़ी सी शरमा गयी
फिर हंस के बोली अनामिका।
उसके बाद तो हमने घंटों
बात आपस में थी की
दोस्त जैसे हों पुराने
हंस रहे हम भर के जी।
इतने में वो स्टेशन आया
जाना था उसको जहाँ
जल्दी में पूछा नहीं
घर कहाँ, रहती कहाँ।
क्या ये रिश्ता प्यार है
कुछ दिन भ्रम में मैं रहा
क्या ये रिश्ता दोस्ती का
या ये रिश्ता अनकहा।