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Kusum Joshi

Inspirational

4  

Kusum Joshi

Inspirational

सुबह सुहानी आयी है

सुबह सुहानी आयी है

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रात अंधेरी छंट गई फ़िर,

सुबह सुहानी आयी है।


सन्नाटों को दूर छोड़ती,

कोयल ने सरगम गायी है,

फ़िर से किरणें रवि रथ बनकर,

अम्बर भर में छायी हैं।


तारों ने बनकर पुष्प समर्पित,

दिनमणि की अगुवाई में,

निशापति की प्रेम पूर्वक,

नभ से करी विदाई है।


फ़िर से महके बाग - बगीचे,

नदियां - सर इठलाते हैं,

भँवरों ने भी एक नयी सी,

स्वागत में धुन गायी है।


फ़िर से चिड़िया नीड़ से अपने,

झाँक - झाँक खुश होती है,

रवि किरणों ने वसुंधरा पर,

नयी ऊर्जा फैलाई है।


पूरब ने श्रृंगार किया फ़िर,

दिनकर के नित स्वागत में,

और मुर्गे ने सूरज को,

पहली आवाज़ लगायी है।


चमक उठी है धरती फ़िर से,

आशाएं नयी लायी है,

फ़िर से रात अंधेरी छंट गई,

सुबह सुहानी आयी है।


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