सुबह का अखबार
सुबह का अखबार
सुबह का अखबार, भरा रहता समाचारों से
फिर क्यों जलाया मुझे मिल के अत्याचारियों ने ।
इसमें मेरी कया गलती,
कि खबर अच्छी नहीं छपती ।
मैं तो सुनाता तुम्हें
खबरें देश- विदेश की ।
है कभी खुशी की खबर, तो वहीं है दर्द की कब्र
मैं तो देता खबरें हर क्षेत्र की ।
अलग -अलग भाषाओ मे आता,
सारी दुनिया की सैर कराता ।
खामोश रहता, फिर भी बहुत कहता
यकीन करते मुझ पे सारे ।
कयोंकि सच्ची बात मैं ले कर आता ।
सबकी सुबह मुझ से होती,
कर के चाय से दोस्ती
इंतजार करते हैं सब मेरा
कयोकि मैं हूँ सबका चहेता ।
सुबह का अखबार, भरा रहता समाचारों से
फिर क्यों जलाया मुझे मिल के अत्याचारियों ने ।
