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स्त्री

स्त्री

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कुशल मंगल रहे परिवार तो स्त्री प्रीत बन जाती,

जहाँ ले कल्पना आकार तो स्त्री मीत बन जाती।


छुपाती दर्द सीने में प्रकट करती नहीं बाहर,

दहकने जब लगे अंगार नारी शीत बन जाती।


दुखों की हो नहीं छाया दिखे आलोक धरती पर,

प्रबल हो तमस का आकार तो स्त्री दीप बन जाती।


प्रकृति की रागिनी बजती अनाहद नाद के जैसे,

हृदय में जब बहे उद्गार तो स्त्री गीत बन जाती।


कभी नभ में उड़ाने भर कभी डूबे गहन सागर,

खुशी या दर्द हो भरमार नारी जीत बन जाती।



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