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Prem Kumar Shaw

Abstract

5.0  

Prem Kumar Shaw

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स्त्री_

स्त्री_

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नमस्कार मैं स्त्री !

हाँ स्त्री..

दुनिया की सबसे सुंदर कृति ?

लोग मुझे प्रकृति भी कहते हैं!

सुना है मैंने ही इस दुनिया को रचा है

और यह भी सुना है कि


मैंने ही इस दुनिया में बहुत से युद्ध करवाया है

मैंने ही किसी के घर जन्म लेकर

उसके सिर पर बोझ बनाया है

मैंने ही गृह कलेश, अशांति भी करवाया है

...

मैंने ही पुरुष के छद्म तृषा को स्वीकारा है

उसके कई तरह के अपराध को 

यूं ही क्षमा कर उसके साथ जीवन गुजारा है

उसके समक्ष कई बार स्वयं को समर्पित भी करा है

...

मैं समर्पित बनूँ 

अब ऐसा हो नहीं सकता

तुम्हारे चले हुए चाल अब चल नहीं सकता

हमारे जीवन को अब कोई छल नहीं सकता

हम भी मानवी है 

हमारे साथ अब कोई दुर्व्यवहार कर नहीं सकता।।



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