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Krishan Solanki

Tragedy

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Krishan Solanki

Tragedy

स्त्री/ वृद्धा या माँ

स्त्री/ वृद्धा या माँ

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बचपन से हम राह देखते रोज तुम्हारी अम्मा जी,

कहते हैं सब लोग हो गई राम को प्यारी अम्मा जी।


तेरे हाथ की जैसी भी माँ हमको मीठी लगती थी,

सूखी खानी पड़ती है अब रोटी खारी अम्मा जी।  


कहते हैं सब ....


तेरे आगे आँगन गलियाँ हँस-हँस के बतियाते थे,

अब तो दौड़ रही खाने को चार दीवारी अम्मा जी।


कहते हैं सब लोग .....


नाना-नानी, मामा-मामी सबने ही मुहँ मोड़ लिया,

तू थी जब तक ही थी सारी रिश्तेदारी अम्मा जी।


कहते हैं सब लोग ....


दुखी-दुखी से बाबूजी भी सहमे सहमे रहते हैं,

बिना आपके हो गया उनका जीना भारी अम्मा जी।


कहते हैं सब लोग....


अब होती तो हम बच्चों को देख देख हर्षा जाती,

बेटी तीनों सुखी विवाहित मैं सरकारी अम्मा जी।


कहते हैं सब लोग.....


ये मकान जो तुझ से घर था कफ़स हो गया बाद तेरे,

टूट गई 'गोपाल' की भी हिम्मत सारी अम्मा जी।


कहते हैं सब लोग हो गई राम को प्यारी अम्मा जी।


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