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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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सतगुरु चालीसा

सतगुरु चालीसा

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सतगुरु चालीसा 
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                  -:दोहा:-
गुरुवर की कर वंदना, नित्य झुकाऊँ माथ।
गुरुवर विनती आप से,रखना सिर पर हाथ।।

            -:चौपाई:-
सतगुरु का जो वंदन करते ।
ज्ञान ज्योति निज जीवन भरते।।१
गुरू  ज्ञान  का  तोड़  नहीं है।
इससे  सुंदर  जोड़  नहीं  है।।२

गुरु वंदन का शुभ दिन आया।
सकल जगत का उर हर्षाया ।।३
गुरु चरनन में  खुशियाँ बसतीं।
सुरभित जीवन नदियाँ रसतीं।।४

गुरु  दरिया  में  आप  नहाओ।
जीवन अपना स्वच्छ बनाओ।।५
गुरुवर  जीवन साज सजाते।
ठोंक- पीटकर ठोस बनाते।।६

पाठ  पढ़ाते  मर्यादा  का।
भाव मिटाते हर बाधा का।।७
गुरू कृपा सब पर बरसाते। 
समय-समय पर गले लगाते।।८

गुरुवर जीवन मर्म बताते।
नव जीवन की राह दिखाते।।९
साहस  शिक्षा  गुरुवर  देते।
जीवन  नैया  जिससे  खेते।।१०

गुरू शिष्य का निर्मल नाता।
जीवन को है सहज बनाता।।११
भेद-भाव नहिं गुरु है करता।
नजर शिष्य पर पैनी रखता।।१२

गुरुवर देकर ज्ञान सहारा।
लाते जीवन में उजियारा।।१३
शिष्य सभी उनको हैं प्यारे।
गुरुवर होते सदा सहारे।।१४

गुरु ही भव से पार लगाते।
जीवन का हर कष्ट मिटाते।।१५
गुरु पर जो विश्वास रखेगा।
जीवन का नव स्वाद चखेगा।।१६

गुरू शरण में तुम आ जाओ।
अपना जीवन आप बनाओ।।१७
महिमा गुरु की है अति प्यारी।
सदा सजाती उत्तम  क्यारी ।।१८

गुरू ज्ञान है बड़ा अनोखा।
सदा बनाता जीवन चोखा।।१९
गुरु  ज्ञानी  सब जान रहे हैं।
अपना हित पहचान रहे हैं।।२०

आप  घमंडी  कभी न होना।
बीज जहर के कभी न बोना।।२१
सतगुरु सबको  यही  बताते।
जीवन का सत लक्ष्य सजाते।।२२

गुरु का जो अपमान करेगा।
घट संकट का स्वयं भरेगा।।२३
सोच समझकर गुरु से बोलो।
निज वाणी  में  मधु  रस  घोलो।।२४

अति ज्ञानी  खुद को मत मानो।
गुरु की क्षमता को पहचानो।।२५
प्रभुवर भी गुरु को शीश झुकाते।
तभी आज ईश्वर कहलाते।।२६

गुरु का मान सदा ही  रखिए।
और किसी से कभी न डरिए।।२७
गुरु संगति से ज्ञान मिलेगा।
बाधाओं का किला ढहेगा।।२८

जिसने गुरु की आज्ञा मानी।
बन जाता वो खुद ही ज्ञानी।।२९
गुरु आज्ञा का पालन सीखो।
रखो शान्ति तुम कभी न चीखो।।३०

गुरू ज्ञान है बड़ा अनोखा।
स्वाद  बड़ा  है देता चोखा।।३१
गुरु  ज्ञानी  सब जान रहे हैं।
अपना हित पहचान रहे हैं।।३२

गुरु अपमान पड़ेगा भारी।
काम नहीं आयेगी  यारी।।३३
सही समय है सोच लीजिए।
नादानी मत आप कीजिए।।३४

गुरु जीवन की सत्य कहानी।
आदि अंत की कथा बखानी।।३५
मात-पिता अरु गुरु सम बानी।
दुनिया में जानी पहचानी।।३६

नैतिक शिक्षा पाठ पढ़ाते।
ज्ञान की दरिया में नहलाते।।३७
गुरु उपकार सदा ही करते।
त्याग भाव से जीवन भरते।।३८

गुरु सेवा से उन्नति होती।
मिले सफलता का ही मोती।।३९
गुरु की माया गुरु ही जानें।
या फिर ब्रह्मा जी पहचानें।।४०

                  -:दोहा:-
हाथ जोड़ विनती करूँ, सतगुरु देव महान।
भूल क्षमा मम कीजिए,जैसे बने विधान ।।

वरद ज्ञान का दीजिए, मेट अहम का भाव।
जीवन जिससे खिल उठे,पार लगे मम नाव।।

सुधीर श्रीवास्तव


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