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Anjali Jain

Abstract Classics

4.5  

Anjali Jain

Abstract Classics

सृजनी

सृजनी

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367


ममता का प्रथम रूप भी यही है,

और बलिदान की पराकाष्ठा भी।

उसका परिचय कोई क्या दे, 

जिससे सारे संसार का अस्तित्व है,

वो माँ ही तो है।


घास के ढेर में सुई ढूँढ लेती है,

तपते हुए बरतन को सरलता से पकड लेती है।

इनके किस्से तो सब जानते है,

पर उसे उचित सम्मान बहुत कम दे पाते है,

वो माँ ही तो होती है।


कहना तो इनको भी काफी कुछ होता है,

पर बिना कहे ज़िन्दगी काट लेती है।

कभी सोचा है इनकी ख्वाहिश क्या रही होगी ?

अब तो चारो पहर बस घर संवारने में निकल जाता है,

वो माँ ही तो होती है।


इन्हे ना गर्मी समझ आती है ना सर्दी,

ना ही उन्हें खुद की हालत दिखाई देती है,

बस काम है इनका लक्ष्य,

धैर्य साध पुरा कर दिखाति है उसे सफल,

जो हर दिन अपने आप को साबित करने से नहीं कतराती,

वो माँ ही तो होती है।


इनकी सही कदर इनके ना होने पे पता चलती है,

अगर कभी ये छुट्टी पे चले जाए, 

तो घर एसा लगे मानो आया हो भूचाल,

जिसके बिना घर का हर कोना हो जाए मायूस,

वो माँ ही तो होती है।


जिसकी दुनिया उसका परिवार है,

और परिवार ही उसका पहला प्यार,

ना मांगे कभी स्वयं के लिए कुछ,

पर बिना हिचकिचाहट दे देती है हमे सब कुछ,

वो माँ ही तो होती है।


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