साया मेरा सारथी।
साया मेरा सारथी।
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आज मैंने अपनी परछाई को छूना चाहा,
मेरे करीब आते ही वो सिकुड़ती गई,
क्या मैं उससे डरा रही थी?
या वो मुझसे मुंह मोड के भाग रही थी?
मैं ना समझ ये ना समझ सकी,
वो तो बस एक छलावा था।
धोखा मेरे नजरो का।
धोखा मेरे मन का।
हकिकत में परछाई मुझसे रूठी नही थी,
ये तो मैं जिंदगी से भाग रही थी,
मेरी परछाई मुझसे डर नहीं रही थी,
मैं इस समाज के खौफ मे जी रही थी।
गज़ब का अनुभव था,
वो काला साया अद्भुत एहसास करवा गया,
मानो खुद काला होकर मुझे सारे रंग दे गया,
यह साया मेरा हमदम बन गया।