सरिता
सरिता
नदियों की बहती कलकल-सी धारा,
मिल जाती पर्वत से गिरकर जैसे
समुद्र की खाई में,
सरिता उसकी सबका मार्गदर्शन है
करती,
जीवन-पथ पर चलते रहने का पाठ
पढ़ाती।
पथ हो चाहे टेढ़े-मेढ़े, ऊँची-नीची
या पथरीले,
हार न मानो इनसे डरकर,
कभी न मुड़कर पीछे देखो,
सदा आगे बढ़ने की प्रेरणा देती,
लहरें इसकी प्रेरित करतीं ।
बढ़े चलो ! बढ़े चलो !
संयम कभी न खोना तुम,
जीवन हर पल नयी राह है,
कभी भी न घबराना तुम,
जो भी मिले हँसकर मिलो,
हर संयोग में संगीत तुम घोलो,
देखना फिर सब सुहाना लगेगा,
नाम तुम्हारा जग में होगा ।