सरहद से घर लौटी मोहब्बत
सरहद से घर लौटी मोहब्बत
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सरहद से घर लौटी मोहब्बत
ख़बर सुनकर ही खुशी से झूम उठी मैं,
दौड़कर जा बाहों में सिमट गयी मैं।
नेह उसका भी मुझसे कुछ कम न था,
उसकी धड़कन बनकर मुस्कुरा रही मैं।
सोलह शृंगार किया प्रियतम के लिए ,
दीदार कर यूँहीं निखर- निखर गयी मैं।
घुँघरू की झंकार मौन थी जानें कबसे,
शंखनाद सुन विजय का फिर खिल गई मैं।
चाहत में उसकी किया जो सजदा मैंने,
खुद ही को भूल ज्यूं उससे लिपट गयी मैं।
देश सेवा कर "एकता" घर लौटी मोहब्बत,
तिलक कर सनम का गर्वित हुयी मैं।